हिमाचल न्यूज़: बैजनाथ (कांगड़ा)
Agriculture News: हिमाचल की दुर्गम चौहार घाटी मे आज भी प्राकृतिक रूप से परंपरागत तरीके से लाल चावल उगाया जाता है। आज के युग में केमीकल खेती ने जहां खाद्य पदार्थों की गुणवता पर सवालिया चिन्ह लगा दिए हैं वहीं प्रदेश में आज भी कुछ दुर्गम क्षेत्रों में परंपरागत खाद्यों पदार्थों की खेती की जा रही है। इसी में शामिल है चौहार घाटी के चौहारटु चावल जो अपने लाल रंग व अपनी औषधीय गुणवत्ता के कारण विशेष महत्व रखते हैं।
हरित क्रांति के दौर में अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों की ओर किसानों के रूझान से दूर चौहार घाटी के किसान आज भी लगभग एक हजार हैक्टेयर में लाल चावलों की चौहारटी किस्म उगा रहे हैं। पब्बर नदी के दोनों तटों पर उगाए जाने वाले चावलों की यह किस्म प्रदेश के अन्य चावलों से पूर्णतय भिन्न है।
हिमाचल प्रदेश के मंडी, कुल्लु और कांगड़ा जैसे जिलों में पहले एक बड़े क्षेत्रफल में औषधीय गुणों से भरपूर लाल चावल की खेती होती थी। लाल चावल हिमाचल प्रदेश की प्रमुख फसलों में से एक है। यहां के दस जिलों में लाल चावल का उत्पादन होता है। लाल चावल की खेती ज्यादातर पहाड़ों पर होती है, लेकिन पिछले कुछ सालों में नई किस्मों के आने से किसानों ने इस किस्म की खेती कम कर दी।
शिमला जिला के सुरु कूट, कुथरु, गानवी, जांगल, नाडाला, कलोटी, देवीधार आदि क्षेत्रों में उगाई जाती है। चंबा जिला में लाल चावल की फसल मानी, पुखरी, साहो, कीड़ी, लाग, सलूणी और तीसा क्षेत्रों में उगाई जाती है। कांगड़ा जिला बैजनाथ, धर्मशाला और बंदला आदि क्षेत्रों में उगाई जा रही है। मंडी जिला में जंजैहली, चुराग, थुनाग क्षेत्रों में लाल चावल की फसल उगाई जाती है।
ये किस्में होती है पैदा
लाल चावल की खेती जून-जुलाई महीने में होती है और अक्टूबर-नवंबर के महीने में फसल तैयार हो जाती है। लाल चावल की खेती मध्य हिमालय के ऐसे क्षेत्रों में होती है, जहां पर पानी की उपलब्धता होती है। जटू, मताली, देवल, करद, छोहराटू और भिरगू यहां की पुरानी किस्में हैं, जिसकी खेती यहां किसान करते आ रहे हैं। इस समय हिमाचल में लाल चावल की छोहराटू, सुकारा तियान, लाल झिन्नी, जतू और मटाली जैसी धान की किस्मों की खेती होती है।
100 से 200 रुपए किलो में बिक जाता लाल चावल
लाल चावल की परंपरागत किस्मों का दूसरे किस्मों के मुकाबले कम उत्पादन मिलता है, चावल की दूसरी किस्मों में प्रति हेक्टेयर लगभग 40 क्विंटल तक चावल का उत्पादन होता है, जबकि लाल चावल की परंपरागत किस्मों से 20-22 क्विंटल ही उत्पादन मिलता है। इसलिए लाल चावल 100 से 200 रुपए में बिक जाता है। जोकि बासमती से भी ज्यादा होता है।
ये है खासियत
चौहार घाटी के लाल चावलो की खास बात यह है कि इसमें रैड परिकारप पाए जाते है, जो शरीर में लोह अयस्कों की पूर्ति करते है। इस चावल के पानी को गर्भवती महिलाओं व बच्चों के लिए अच्छा आहार माना जाता है। इनमें आयरन, जिंक और मैग्नीशियम की भरपूर मात्रा होती है, साथ ही शुगर मरीज चावल नहीं खाते हैं, लेकिन चावल शुगर के मरीज भी खा सकते हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
डॉ. आरपी कौशिक ने हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में पैदा होने वाले लाल चावल की 16 किस्मों में पोषक तत्वों पर रिसर्च भी की है। वो बताते हैं, “रिसर्च में पाया कि चावल की दूसरी किस्मों के मुकाबले लाल चावल में पोषक तत्व ज्यादा पाए जाते हैं। इनमें आयरन और जिंक भरपूर मात्रा में पाया जाता है, इसमें 25.9 पीपीएम जिंक की मात्रा होती है, जबकि दूसरी चावल की किस्मों में 12 से 15 पीपीएम जिंक पाया जाता है। लाल चावल की एक खास बात होती है, इसमें सभी पोषक तत्व चावल के ऊपरी हिस्से पर ही होते हैं, इसलिए लाल चावल को पॉलिस नहीं किया जाता है। इससे पोषक तत्व बरकरार रहते हैं।
चौहार घाटी में जन्म से मरण तक लाल चावल का प्रयोग
सदियो से चली आ रही लोक परंपरा के चलते लाल चावल चौहार घाटी के लोगों के जीवन का अंग बन चुका है। जन्म से लेकर मरण तक अपने परंपरागत अनुष्ठानों में इन चावलों का प्रयोग चौहारवासी करते हैं। लाल चावल के बिना चौहार घाट के लोगों का कोई भी अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता। विवाह समारोह, मुंडन संस्कार या अन्य कोई भी शुभ कार्य हो लाल चावल को हर रस्म और भोज में शामिल किया जाता है। यही नहीं, अंतिम क्रिया की रस्म अदायगी में भी लाल चावल का उपयोग होता है।
लाल चावल को जीआई प्राप्त करने के प्रयास
लाल चावल कुल्लू जिला का प्राचीन अनाज है। लाल चावल की फसल पहले जिला कुल्लू के कई स्थानों होती थी, लेकिन अब जिला की ऊझी घाटी यानी मनाली के गांवों में ही कृषक इस फसल को उगाते हैं। कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर फसलों के लिए भौगोलिक संकेत (जियोलॉजिकल इंडिकेशन), (जीआई) प्राप्त करने के प्रयास कर रहा है। इसमें प्रदेश के अन्य अनाजों के साथ कुल्लू के लाल चावल को भी लिया गया है। कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने प्रदेश के कुल्लू, कांगड़ा और मंडी क्षेत्र के लाल चावल चावल को जीआई प्राप्त करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। यह तीनों जिलों के कृषकों के लिए बड़ी खुशखबरी है।
Posted By: Himachal News