Dr Yashwant Singh Parmar: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के निर्माता और पहले मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार का आज 118वां जन्मदिन है। इनका जन्म 4 अगस्त, 1906 को हिमाचल के जिला सिरमौर के चन्हालग गांव में हुआ था। हिमाचल के अधिकारों के संरक्षण के लिए आज भी हर हिमाचली इन्हें सच्चे दिल से याद करता है।
यशवंत सिंह परमार के पिता शिवानंद भंडारी उर्दू व फारसी के विद्धान व कला संस्कृति के संरक्षक रहे। वे सिरमौर रियासत के दो राजाओं के दीवान रहे थे। वे शिक्षा के महत्व को समझते थे। इसलिए उन्होंने यशवंत को उच्च शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी शिक्षा के लिए पिता ने जमीन जायदाद गिरवी रख दी थी। यशवंत सिंह ने 1922 में मैट्रिक व 1926 में लाहौर के प्रसिद्ध सीसीएम कॉलेज से स्नातक के बाद 1928 में लखनऊ के कैनिंग कॉलेज में प्रवेश किया और वहां से एमए और एलएलबी किया। 1944 में ‘सोशियो इकोनोमिक बैकवल्र्ड ऑफ हिमालयन पोलिएंडरी’ विषय पर लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएचडी की। इसके बाद हिमाचल विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की।
डॉ. परमार 1930 से 1937 तक सिरमौर रियासत के सब जज व 1941 में सिरमौर रियासत के सेशन जज रहे। 1943 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया।
1946 में डॉ. परमार हिमाचल हिल्स स्टेटस रिजनल कॉउंसिल के प्रधान चुने गए। 1947 में ग्रुपिंग एंड अमलेमेशन कमेटी के सदस्य व प्रजामंडल सिरमौर के प्रधान रहे। उन्होंने सुकेत आंदोलन में बढ़-चढक़र हिस्सा लिया और प्रमुख कार्यों में से एक रहे। 1948 से 1950 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। 1950 में हिमाचल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। अपने सक्षम नेतृत्व के बल पर 31 रियासतों को समाप्त कर हिमाचल राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो आज पहाड़ी राज्यों का आदर्श बनने की ओर अग्रसर है। वह डॉ. परमार की ही देन है।
डॉ. परमार 1952 में प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने। 1956 में वे संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। 1963 में दोबारा प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 24 जनवरी, 1977 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया। इसके चार वर्ष पश्चात 2 मई, 1981 को हिमाचल के सिरमौर डॉ. परमार ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
डॉ. यशवंत सिंह परमार महान और दूरदर्शी व्यक्तित्व थे। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के विकास की मजबूत आधारशिला रखी। डॉ. परमार का सम्पूर्ण जीवन हिमाचल प्रदेश के लिए समर्पित रहा है। वर्तमान में प्रदेश विकास की राह पर अग्रसर है, यह डॉ. परमार का सपना था। डॉ. परमार ने प्रदेश का इतिहास ही नहीं, बल्कि भूगोल को भी बदला। उन्होंने प्रदेश की सीमाओं को और बड़ा किया। हिमाचल का अस्तित्व डॉ. परमार की अतुलनीय देन है।
डॉ. परमार को हिमाचल की संस्कृति और पर्यावरण के संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है, उन्हें पर्यावरण से बहुत लगाव था। उन्होंने प्रदेश की सबसे बड़ी सम्पदा वनों के संरक्षण को सदैव ही अधिमान दिया। डॉ. परमार ने प्रदेश को हरित राज्य बनाने का मार्ग प्रशस्त किया।
हिमाचल प्रदेश के स्वरूप में डॉ. परमार का बहुत बड़ा योगदान है। हिमाचल प्रदेश के गठन के समय राज्य की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन डॉ. यशवंत सिंह परमार ने उन चुनौतियों का मजबूती से सामना किया और प्रदेश को बड़ी-बड़ी बाधाओं से बाहर निकाला।
वर्ष 1971 में प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने में डॉ. परमार की अहम भूमिका रही है।
मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने आज हिमाचल प्रदेश विधानसभा परिसर शिमला में हिमाचल निर्माता और प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार की 118वीं जयंती के अवसर पर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यक्रम अवसर पर कहा कि हमें डॉ. परमार के सिद्धांतों और उनके दिखाए मार्ग पर चलने की आवश्यकता है।
विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने डॉ. परमार को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि डॉ. परमार ने हर क्षेत्र में प्रदेश के सर्वांगीण विकास का लक्ष्य निर्धारित किया था। डॉ. परमार की दूरदर्शी सोच को साकार किया जा रहा है। उनके द्वारा प्रदेश हित में किए गए कार्यों को सदैव याद रखा जाएगा।
विधानसभा उपाध्यक्ष विनय कुमार ने कहा कि हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार के प्रति हर व्यक्ति आदर और श्रद्धा का भाव रखता है। वह सादगी, सच्चाई और ईमानदारी के धनी थे। उनका जीवन सभी के लिए प्रेरणास्रोत है। डॉ. परमार ने विकसित हिमाचल की परिकल्पना की और आज हम निरंतर इस लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहे हैं।
साहित्यकारों ने डॉ. यशवन्त सिंह परमार को गेयटी में किया याद
साहित्यकारों ने हिमाचल निर्माता और पहाड़ी भाषा एवं संस्कृति प्रेमी डॉ. यशवन्त सिंह परमार की दो दिवसीय राज्य स्तरीय जयंती समारोह का आयोजन हिमाचल कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी द्वारा शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थिएटर में किया गया। इस अवसर पर 3 अगस्त को अन्तरविद्यालय और अन्तरमहाविद्यालयों के छात्र-छात्राओं की निबंध लेखन एवं भाषण प्रतियोगिता आयोजित करवाई गई। 4 अगस्त को साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, कार्यक्रम में पद्मश्री विद्यानंद सरैक ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की और विशिष्ट अतिथि के रूप में स्वतंत्रता सेनानी कल्याण मंच सिरमौर के अध्यक्ष जय प्रकाश चौहान उपस्थित रहे।
इस समारोह में चूडेश्वर लोक नृत्य सांस्कृतिक मंडल सिरमौर और युवा विकास कला मंच रिठोग ज़िला सिरमौर द्वारा प्रस्तुत पारंपरिक लोक नृत्य और हारूल गायन की बेहतरीन प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया।
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