Agriculture News: आज के युग में जहां फल सब्जियों एवं खाद्यान्न में रसायनों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। इसी कारण कैंसर, टीवी, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों का भी प्रकोप बढ़ रहा है। रसायनों के अधिक प्रयोग के दुष्प्रभावों को देखते हुए आज प्राकृतिक कृषि की आवश्यकता मसूसस की गई हैI
सरकार ने जहां प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई हैं वहीँ पर जिला कुल्लू की कृषक महिलाएं प्राकृतिक कृषि की तकनीक को उत्पाद अपना कर न केवल जहर मुक्त खेती- बागवानी की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं बल्कि बाजार में इसकी बढ़ती मांग को पूरा कर अच्छी आमदनी भी कमा रही है।
ग्राम पंचायत हाट की महिला कृषक मीरा देवी का कहना है कि वे 2 साल से प्राकृतिक खेती कर रही हैं तथा पिछले वर्ष उन्होंने इसका प्रशिक्षण भी लिया था। विभाग की सहायता से देसी गाय भी खरीदी है जिसके गोबर व गोमूत्र से वे स्वयं ही जीवामृत, वीजामृत इत्यादि बनाते हैं तथा उनका प्रयोग करते हैं।
यहां की एक अन्य कृषक बबली ने ढाई बीघा में अनार की कृषि प्राकृतिक रूप से शुरू की है। जिसमें रसायनों का प्रयोग नहीं होता है इससे प्राकृतिक उत्पाद जो बाजार में जाता है उससे काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं तथा जहर मुक्त कृषि उत्पादन से स्वस्थ जीवन शैली की ओर बढ़ रहे हैं I
वहीं खोखन गाँव की एक अन्य महिला कृषक हीरामणि का कहना है कि वह 5 बीघा में 2018 से प्राकृतिक कृषि कर रही हैं। इसके उन्हें बहुत बढ़िया परिणाम सामने आए हैं। 2018 में उन्होंने प्रशिक्षण ग्रहण किया था। इसके पश्चात उन्होंने प्राकृतिक खेती आरंभ की। यह सेब की बागवानी में भी प्राकृतिक कृषि की तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने अपने खेत में सरसों, मेथी, धनिया, पालक, मटर इत्यादि की खेती लगा राखी है तथा सेब के पेड़ों में नाइट्रोजन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए चने की कृषि की हुई है। इसके उन्हें बहुत ही बेहतर परिणाम मिल रहे हैं।
इनका कहना है कि एक स्वस्थ जीवन के लिए रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती आज के युग की एक बहुत बड़ी आवश्यकता है ताकि रसायनों के अत्यधिक से प्रयोग से होने वाली बीमारियों से बचा जा सके तथा प्राकृतिक कृषि से पैदा किए हुए फल सब्जियां अनाज इत्यादि का प्रयोग करने से हम एक स्वस्थ जीवन को अपना सके। उन्हें समय पर विभाग कृषि तथा कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से प्रशिक्षण तथा बी इत्यादि के रूप में भी सहायता मिलती रहती है।
क्या कहते हैं अधिकारी
आतमा परियोजना की डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर डा बिंदु शर्मा का कहना है कि बजौरा के हाट पंचायत में कुछ किसानों द्वारा प्राकृतिक क्षेत्रीय खेती का कार्य 2 साल से किया जा रहा है। यह लगभग 2 से 5 बीघा के अंदर लहसुन, प्याज, मटर इत्यादि की कृषि कर रहे हैं तथा यह प्रकृति कृषि के सभी घटकों जीवामृत, घन जीवामृत, ब्रह्मास्त्र इत्यादि का प्रयोग प्राकृतिक रूप से कृषि करने के लिए कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें सरकार की तरफ से ₹10000 की सब्सिडी भी दी जा रही है तथा देसी गाय के लिए उन्हें सारे ₹17000 की सब्सिडी प्रदान की गई है। इन कृषकों ने यहां पर संसाधन भंडार भी तैयार किया है जिसमें यह सस्ती दर पर इन घटकों को उपलब्ध कराती है।
Posted By: Himachal News