हरिराम चौधरी: शिमला
हिमाचल न्यूज़ | भांग का नाम सुनते ही आमतौर पर हमें नशे वाला कोई पदार्थ ही दिमाग में आता है। लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है। वैश्विक स्तर पर भांग का इस्तेमाल जहाज से लेकर कागज तक बनाने में किया जाता है। भांग की खेती का इतिहास लगभग 12 हजार वर्ष पुराना है और इसे मानव द्वारा उगाई गई सबसे पुरानी फसलों में गिना जाता है। सदियों से यह खुले में प्राकृतिक तौर पर उगती रही है।
दरअसल, पूर्व काल से लेकर हिमाचल के लोगों के लिए भांग बेहद उपयोगी रही है। कुल्लू और मंडी में पारंपरिक रूप से फुटवियर, रस्सी, चटाई और खाद्य पदार्थों में भांग या इसके पौधे का उपयोग किया जाता है। वैश्विक स्तर पर कैनाबिस उत्पादों का उपयोग स्वास्थ्य और औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। लेकिन पूर्वकाल में जिस भांग के पौधे का उपयोग हिमाचली औषधि के लिए करते थे, देखते ही देखते वो राज्य के लिए समस्या बन गया।
वहीं, वर्ष 1985 में भारत सरकार ने भांग की खेती को गैरकानूनी घोषित कर दिया था। भारत सरकार ने नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPC) अधिनियम के तहत भांग के पौधों की खेती पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। भांग की खेती वर्जित होने से कुछेक क्षेत्रों में चोरी-छिपे इसकी खेती की जा रही है। ऐसे में विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इसके आंतरिक तौर पर उत्पादन को भी बढ़ावा मिला।
इस बीच, हिमाचल प्रदेश में भी भांग की खेती को लीगल करने की मांग उठती रहती है। देखा जाये तो इसके पीछे के कई कारण हैं, जिनमें से पहली वजह है सेब की खेती। लेकिन मौसम की अनिश्चितता के कारण सेब से होने वाली आय में समय के साथ गिरावट आयी है और पहाड़ी राज्य के किसान वैकल्पिक लाभकारी फसलों की तलाश कर रहे हैं। किसानों का मानना है कि चुनिंदा अफीम और भांग की खेती से राज्य में समृद्धि बढ़ सकती है। इसलिए राज्य के किसान भांग खेती को कानूनी दर्जा देने की मांग करते रहे हैं।
एक अनुमान के अनुसार हिमाचल में उत्पादित 60 प्रतिशत से अधिक अफीम और भांग की यूरोपीय देशों में तस्करी की जाती है। अगर भांग की खेती को कानूनी वैधता मिल जाएगी तो अवैध रूप से जो खेती राज्य में की जा रही है उस पर अंकुश लग जाएगा। अक्सर यह वकालत की जाती है कि भांग खेती से राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी।
ट्रिलियन डॉलर की फसल है भांग
भांग के पौधे ने हाल के वर्षों में विश्व स्तर पर अपनी औषधीय और औद्योगिक क्षमता को प्राप्त किया है। कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, फ्रांस, इटली, हंगरी, चीन, डेनमार्क, अन्य यूरोपीय देशों, ऑस्ट्रेलिया आदि कई देश दुनिया भर में भांग की खेती और बहु-उपयोगिता उत्पादों के निर्माण में अग्रणी हैं। भांग के पौधे का उपयोग औद्योगिक और औषधीय उद्देश्यों दोनों के लिए किया जाता है। वर्तमान में भांग की फसल को ‘ट्रिलियन डॉलर की फसल‘ के रूप में जाना जाता है। इस पौधे में 100 से अधिक कैनबिनोइड्स मौजूद हैं, जिनमें टीएचसी और सीबीडी प्रमुख अनुपात में हैं। टीएचसी साइकोएक्टिव है जबकि सीबीडी नॉन-साइकोएक्टिव कंपाउंड है। केवल पौधे में उच्च टीएचसी की उपस्थिति के कारण इसे एक मादक फसल माना जाता है।
भांग में पाए जाते हैं ये औषधीय गुण
भांग में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसके इस्तेमाल से कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अवसाद आदि से ग्रसित मरीजों को काफी राहत मिलती है। उतराखंड में औद्योगिक भांग के क्षेत्र के विशेषज्ञ बीएस नेगी बताते हैं कि भांग का उपयोग पुरानी बीमारियों के उपचार के लिए किया जा रहा है। जिसमें मल्टीपल स्केलेरोसिस, क्रोहन रोग, अल्जाइमर रोग, कैंसर आदि शामिल हैं। कुछ प्रीक्लिनिकल शोधों ने गैर-साइकोएक्टिव फाइटो-कैनाबिनोइड्स के लिए अन्य संभावित चिकित्सीय अनुप्रयोगों की वकालत की है। भांग में पाए जाने वाले कैनबिडिओल (सीबीडी) में मनोविकृति, भावात्मक और जब्ती विकारों, सूजन और न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग के उपचार के लिए उपचारात्मक चिकित्सीय अनुप्रयोग हैं। भांग के बीज में आसानी से पचने योग्य पूर्ण प्रोटीन की एक उच्च सामग्री होती है और तेल का एक समृद्ध भंडार होता है, जो उचित मानव पोषण के लिए आवश्यक लिनोलिक में आवश्यक फैटी एसिड का अनुकूल अनुपात प्रदान करता है।
वैश्विक बाजार में है 25,000 से अधिक उत्पाद
कई देशों में कैनबिस सैटिवा एल (औद्योगिक भांग) आमतौर पर फाइबर, बीज, बायोमास या अन्य दोहरे उद्देश्य वाली फसल के रूप में उगाया जाता है। भांग के वैश्विक बाजार में 25,000 से अधिक उत्पाद हैं। भांग का पौधा प्राकृतिक मूल के सबसे अच्छे और सबसे टिकाऊ फाइबर का उत्पादन करता है। प्राचीन काल से समुद्री जहाजों, कागज, बैंकनोट और जीन्स के लिए प्रयोग में लाया जाता रहा है। फाइबर का रस्सियों और तरपाल का उत्पादन करने के लिए उपयोग किया जाता था। इसके आधुनिक अनुप्रयोगों में उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है, जिसमें कपड़े, यार्न और संसाधित स्पून फाइबर, कारपेटिंग, विशेष कारों के डैशबोर्ड, घरेलू सामान, निर्माण व इन्सुलेशन सामग्री, ऑटो पार्ट्स और कंपोजिट शामिल हैं। आंतरिक डंठल का उपयोग जानवरों के बिस्तर, कच्चे माल के आदानों, कागजों और कंपोजिट में किया जाता है। भांग के बीज, तेल और तिलहन का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन, व्यक्तिगत देखभाल और फार्मास्यूटिकल्स में खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों की एक श्रृंखला में किया जाता है।
कई राज्यों ने तैयार की है व्यावसायिक नीति
कई देशों में भांग की खेती को कानूनी मान्यता दी गई हैं। भांग की पौधे की क्षमता को समझते हुए जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों ने इसकी खेती के लिए अनुसंधान एवं विकास और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए नीतियां तैयार की हैं। उत्तराखंड सरकार ने पहले ही विशेष किस्मों की व्यावसायिक खेती की अनुमति दे दी है, जबकि यूपी सरकार ने केवल अनुसंधान एवं विकास उद्देश्यों के लिए लाइसेंस जारी करने के लिए नीति तैयार की है। उत्तराखंड वर्ष 2017 में भांग की खेती को वैध करने वाला देश का पहला राज्य बना। गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भी भांग की नियंत्रित खेती की जा रही है।
क्या कहता है कानून
संसद में वर्ष 1985 में एनडीपीएस एक्ट के तहत भांग को परिभाषित किया था, जिसके तहत भांग के पौधे से राल और फूल निकालने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। इस अधिनियम की धारा-10(क)(iii) राज्यों को भांग के पौधों की खेती, उत्पादन, स्वामित्व, परिवहन, खपत, उपयोग और खरीद एवं बिक्री (चरस को छोड़कर) इत्यादि पर नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है। राज्यों को सामान्य या विशेष आदेश द्वारा, केवल फाइबर या बीज प्राप्त करने या बागवानी उद्देश्यों के लिए भांग की खेती की अनुमति देने का अधिकार है। यह अनुमति केवल भांग के रेशे अथवा इसके बीज या बागवानी और औषधीय उपयोग के लिए ही दी जा सकती है। औद्योगिक उद्देश्य से इसका उत्पादन देश में कानूनी रूप से वैध है। नारकोटिक ड्रग्स एवं साइकोट्रोपिक सब्स्टांसिज पर राष्ट्रीय नीति में भांग को जैव ईंधन, रेशे तथा उच्च गुणों के तेल के स्रोत के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।
भांग की खेती सियासत या जरूरत
अब सवाल यह उठता है कि हिमाचल प्रदेश में भांग की खेती जरूरत है या सियासत। आखिर कौन लोग हैं जो भांग की खेती को लीगल करने की वकालत कर रहें हैं और इसके पीछे जो भी तर्क दिया जा रहा है वह भी किसी के गले से उतरने वाला नहीं हैं। आखिर हिमाचल में रोजगार के साधन असीमित है। बुद्धिजीवी वर्ग भांग की खेती को वैध करने के गम्भीर दुष्परिणाम की आशंका जताते हैं। निष्कर्ष यही निकलता है जब हिमाचल में पर्यटन व्यवसाय गांव गांव में पहुंच गया है और प्रदेश हजारों युवा इस रोजगार से जुड़ें हैं तो सरकार को उस ओर ध्यान देना चाहिए।
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Posted By : Himachal News