सोमसी देष्टा: शिमला
इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (IGMC) में स्क्रब टायफस (Scrub Typhus) से पीड़ित मरीज की मौत हो गई है। इस बीमारी से इस साल की यह पहली मौत है। अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक डॉ. राहुल राव ने इसकी पुष्टि की है।
91 साल का पीड़ित मरीज कई दिनों से IGMC में उपचाराधीन था। 29 जुलाई को उसे मेडिकल आईसीयू में दाखिल किया गया जबकि 2 अगस्त को उसका स्क्रब टेस्ट पॉजिटिव आया। मरीज बुखार और सांस लेने में तकलीफ से जूझ रहा था। गंभीर स्थिति में होने के कारण मरीज की बुधवार को मौत हो गई।
पीड़ित मरीज उच्च रक्तचाप, मधुमेह, गुर्दे के रोग समेत अन्य बीमारियों से भी जूझ रहा था। इसके अलावा मरीज ने निजी अस्पताल में भी जांच करवाई थी। लेकिन अब अस्पताल ने स्क्रब से मरीज की मौत के बाद इलाज के लिए आए मरीजो को सचेत करना शुरू कर दिया है।
IGMC प्रबन्धन से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 2024 में अब तक कुल 301 स्क्रब टायफस के सैंपल की जांच की है। इसमें 44 मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है।
इन राज्यों में फ़ैल रहा है स्क्रब टायफस
बता दें कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बाद अब उत्तर प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत कई राज्यों में इन दिनों एक रहस्यमयी बुखार के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इन राज्यों में स्क्रब टाइफस बुखार से कई लोगों की जान भी जा चुकी है। स्क्रब टाइफस के मामलों में मृत्यु दर 6 फीसदी बताई जा रही है।
जानिए क्या है स्क्रब टाइफस
इस बुखार को रहस्यमयी इसलिए माना जा रहा है, क्योंकि इसके लक्षण तो डेंगू फीवर से मिलते-जुलते हैं, लेकिन जांच में ना तो डेंगू निकलता है और ना ही टायफाइड फीवर। डॉक्टरों का कहना है कि ये स्क्रब टाइफस फीवर है। तेज बुखार के साथ होने वाली ये बीमारी झाड़ियों यानी स्क्रब या बुश में पाए जाने वाले माइट यानी चींचड़ा के काटने से होती है। इसीलिए इसका नाम स्क्रब टाइफस रखा गया है। इसे बुश टाइफस भी कहते हैं। ये बीमारी बैक्टीरिया से संक्रमित पिस्सु के काटने पर फैलती है। इसके बाद स्क्रब टाइफस बुखार बन जाता है। शुरुआत में किसान और बागवान इस बीमारी का शिकार हुए, लेकिन अब ये सभी में फैल रहा है।
जांच के लिए किया जाता है एलीजा टेस्ट
विशेषज्ञों के मुताबिक, स्क्रब टायफस की जांच के लिए एंजाइम लिंक्ड इम्यूनोसोरबेंट यानी एलीजा टेस्ट किया जाता है। ये टेस्ट आईजीजी और आईजीएम की जानकारी अलग से देता है। इसमें मरीज का ब्लड सैंपल लेकर एंटीबॉडीज का पता किया जाता है। एक जांच किट की कीमत करीब 18,000 से 20,000 रुपये होती है. वहीं, एक किट के जरिये 70 से 75 टेस्ट किए जा सकते हैं।
कैसे फैलता है स्क्रब टाइफस
विशेषज्ञों का कहना है कि खेतों और झाड़ियों में रहने वाले चूहों पर चिगर्स कीट पाया जाता है। अगर संक्रमित चिगर्स या चूहों का पिस्सू काट लेता है तो ओरेंशिया सुसुगेमोसी बैक्टीरिया इंसान के रक्त में प्रवेश कर संक्रमित कर देता है। स्क्रब टाइफस से कोई भी व्यक्ति संक्रमित हो सकता है।
स्क्रब टाइफस के लक्षण?
इसके लक्षण पिस्सु के काटने के 10 दिन बाद दिखने शुरू होते हैं। स्क्रब टाइफस से संक्रमित व्यक्ति को बुखार के साथ ठंड लगती है। इसके अलावा सिरदर्द और बदन दर्द के साथ मांसपेशियों में भी तेज दर्द होता है। संक्रमण ज्यादा होने पर हाथ, पैर, गर्दन और कूल्हे के नीचे गिल्टियां हो जाती हैं। स्क्रब टायफस के रोगियों को तेज बुखार 104 से 105 तक आ सकता है। साथ ही संक्रमण के बाद सोचने-समझने की क्षमता कम होने लगती है। कभी-कभी शरीर पर दाने भी हो सकते हैं। अगर समय पर इलाज ना कराया जाए तो भ्रम से लेकर कोमा तक की समस्या महसूस होने लगती है। कुछ लोगों में ऑर्गन फेलियर और इंटरनल ब्लीडिंग भी हो सकती है।
स्क्रब टायफस से ऐसे करें बचाव
स्क्रब टाइफस से बचाव के लिए अभी तक कोई वैक्सीन नहीं बनाई गई है। स्क्रब टाइफस से बचाव ही सबसे अच्छा इलाज है। ये बीमारी सितंबर-अक्टूबर के महीने में सबसे ज्यादा फैलती है। शरीर में सफाई का ध्यान रखें। घर और आसपास के वातावरण को साफ रखें। घर के चारों ओर घास, खरपतवार नहीं उगने दें। घर और आसपास कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें। अगर संक्रमण हो जाता है तो घर पर इलाज करने के बजाय डॉक्टर से तुरंत परामर्श लेना सबसे अच्छा विकल्प है।
स्क्रब टाइफस का क्या है इलाज?
परीक्षण में स्क्रब टाइफस रोग की पुष्टि होने के बाद डॉक्टर्स बीमारी की गंभीरता कम करने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं देते हैं। साथ ही दूसरे लक्षणों को ध्यान में रखते हुए उपचार के लिए अन्य दवाइयां भी दी जाती हैं। डॉक्टर्स की पूरी कोशिश मरीज की हालत गंभीर होने से रोकना और रोगी को कोमा जैसी स्थिति में नहीं जाने देने की रहती है।
Himachal News
अपने शहर की और खबरें जानने के लिए Like करें हमारा Facebook Page Click Here