Joginder Habbi: कहते हैं कि अगर मन में कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो छोटी जगह में रहकर भी बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है। यह सिर्फ एक कहावत ही नहीं बल्कि हकीकत है। जी हां हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले के बेहद दुर्गम राजगढ़ क्षेत्र के लोक कलाकार जोगिंदर हाब्बी इसका जीता जागता उदाहरण बन गए हैं।
हिमाचल प्रदेश भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा राज्य तथा जिला स्तर की लोक नृत्य प्रतियोगिता में लगातार दस वर्षों से प्रथम स्थान हासिल करने वाले अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हिमाचली लोक कलाकार जोगिन्द्र हाब्बी का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स तथा एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज होने से हिमाचल लोक नृत्य ने ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किया है।
जोगिन्द्र हाब्बी सांस्कृति दल आसरा और चूड़ेश्वर कला मंच का नेतृत्व करते हैं, जिन्होने सिरमौर की संस्कृति की देश व विदेश में उत्कृष्ट प्रदर्शन करके अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
एशिया रिकॉर्ड्स बुक में दर्ज हुआ जोगेंद्र हाब्बी का नाम
संस्कृति के संरक्षण का उनका प्रयास पहले उन्हें इंडियन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और अब एशिया रिकार्ड्स बुक तक ले गया है। सिरमौर जिला के उपमंडल राजगढ़ निवासी जोगेंद्र हाब्बी का नाम एशिया रिकॉर्ड्स बुक में दर्ज होने से न केवल उनके दल के कलाकारों में भारी उत्साह है, बल्कि पूरे सिरमौर व प्रदेश भर में खुशी की लहर है।
लोकनृत्य प्रतियोगिता में लगातार 10 बार रहा पहला स्थान
जोगिद्र सिंह हाब्बी को भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित की जाने वाली लोकनृत्य प्रतियोगिता में लगातार 10 बार उनके निर्देशन वाले दल को पहला स्थान मिलने पर उन्हें यह सम्मान मिला है। इससे पहले इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में भी उनका नाम दर्ज हो चुका है। हाब्बी सिरमौर के पहले लोक कलाकार हैं, जिनके नाम यह रिकॉर्ड दर्ज हुए। देश के विभिन्न हिस्सों के अलावा विदेशों में भी उनका दल सिरमौरी लोक संस्कृति की छाप छोड़ चुका है।
8 बार राज्य स्तर पर और 1 बार राष्ट्रीय स्तर पर हासिल की जीत
विभिन्न विभागों व संस्थानों द्वारा आयोजित लोकनृत्य प्रतिस्पर्धाओं में 8 बार राज्य स्तर पर व एक बार राष्ट्रीय स्तर पर जीत हासिल कर उनके दल ने सिरमौरी संस्कृति व अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।
अपने गुरु को दिया श्रेय
जोगिंदर हाब्बी ने इन दोनों रिकॉर्ड का श्रेय अपने गुरु पद्मश्री विद्यानंद सरैक व सहयोगी कलाकारों को दिया। हाब्बी ने कहा कि पद्मश्री विद्यानंद सरैक द्वारा करीब दो दशक से आसरा व चूड़ेश्वर सांस्कृतिक दल के कलाकारों को समय-समय पर लोक नृत्य व विधाओं का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
हाटी संस्कृति से मिली राह
हाब्बी ने कहा कि हमारा दल सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं में जिला सिरमौर का आदिकालीन ठोडा नृत्य, ढीली नाटी, रिहाल्टी गी, दीपक नृत्य, परात नृत्य, सिरमौरी मुंजरा, रासा व हुड़ग नृत्य, झुरी, सिंहटू तथा भड़ाल्टू नृत्य आदि लोक विधाओं को कोरियोग्राफ कर तथा समय सीमा में बांधकर एक गुलदस्ते के रूप में सिरमौरी हाटी जनजातीय संस्कृति के वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत करता आया है। हाब्बी दल का नेतृत्व एवं निर्देशन करते हुए स्वयं भी मुख्य लोक नर्तक के रूप में सांस्कृतिक दल की अगुवाई करते आए हैं।
हाटी समुदाय का जनजातीय भड़ाल्टू नृत्य
भड़ाल्टी सक्रांति की रात को भेड़ बकरी पालक (भड़ाले) चूड़धार के जंगलों में इस पर्व को मनाते थे। रात को घेना (आग) जला कर उसके चारों और भड़ाल्टू नृत्य करते थे और आराध्य देव शिरगुल महाराज से अपने भेड़ बकरियों की बणशिरा व जंगली जानवरों से रक्षा के लिए प्रार्थना करते थे।
सिरमौरी संस्कृति को विश्व स्तर तक ले जाएंगे
जोगिन्द्र हाब्बी कहते हैं कि हिमाचल व सिरमौर जनपद की समृद्ध संस्कृति को विश्व स्तर पर और अधिक पहचान दिलाने के लिए प्रयासरत रहेंगे।
Posted By: HIMACHAL NEWS