किशन श्रीमान
Most Destructive Landslides in indian History: भारतीय इतिहास में झाकें तो इससे पहले भी जमीन खिसकी हैं और मलबो के ढेर सैकड़ों लोग जिंदा दफन हो गए थे। देश इससे पहले भी भूस्खलन (Landslide) की वजह से तबाही का अनगिनत मंजर देख चुका हैं। आइए जानते हैं भारत में आए पांच सबसे भयानक भूस्खलन की घटनाओं के बारे में।
केरल में 6 साल आई बाढ़ में मरे थे 483 लोग
केरल में भूस्खलन की भयानक घटनाएं पहले भी देखने को मिली चुकी हैं। भीषण मौसमी घटनाओं से केरल में बीते छह सालों में जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, 2015 से 2022 के बीच देश में सबसे ज्यादा भूस्खलन की घटनाएं केरल में हुईं। मंत्रालय के मुताबिक, इस अवधि में देश में भूस्खलन की 3782 घटनाएं हुई जिनमें से 2,239 घटनाएं केरल में हुईं।
Most Destructive Landslides in Indian History: भारतीय इतिहास में अब तक के सबसे विनाशकारी भू-स्खलन
2018: अगस्त 2018 में आई प्राकृतिक आपदा में केरल के दस जिलों 341 बड़े भूस्खलन हुए। इसमें से अकेले इडुकी में 143 भूस्खलन आए थे। इन हादसों में 483 लोगों की मौत हो गई थी। इस आपदा को राज्य की ‘सदी की बाढ़’ कहा गया था। इस त्रासदी में संपत्ति और आजीविका भी बड़े स्तर पर नष्ट हो गई थी। केंद्र सरकार ने 2018 की बाढ़ को ‘डिजास्टर ऑफ सीरियस नेचर’ घोषित किया था। इस हादसे के बाद 3.91 लाख परिवारों के 14.50 लाख से ज्यादा लोगों को राहत शिविरों में पुनर्वासित किया गया था। कुल 57,000 हेक्टेयर कृषि फसलें नष्ट हो गईं थीं।
2019: साल 2019 में केरल में एक और आपदा आई। केरल के आठ जिलों में सिर्फ तीन दिन में 80 भूस्खलन की घटनाएं हुईं, इसमें 120 लोग मारे गए थे। यह स्थान 30 जुलाई 2024 को हुए भूस्खलन क्षेत्रों से लगभग 10 किलोमीटर दूर है।
2021: लगातार बारिश के कारण अक्टूबर 2021 में केरल में फिर भूस्खलन हुआ, जिससे राज्य के इडुक्की और कोट्टायम जिलों में 35 लोगों की मौत हो गई थी। भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2021 में भारी वर्षा और बाढ़ से संबंधित घटनाओं से केरल में 53 लोगों की मौत हो गई है।
2022: भारी बारिश के कारण केरल में अगस्त 2022 को भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ में 18 लोगों की मौत हो गई थी। सैकड़ों संपत्तियों को नुकसान पहुंचा और हजारों लोगों को राहत शिविरों में विस्थापित होना पड़ा था।
2014 मलिन गांव: जुलाई 2014 में पुणे महाराष्ट्र का खूबसूरत मलिन गांव भारी बारिश की वजह से हुए भूस्खलन की वजह से कब्रिस्तान में बदल गया, मलबे में दबने से लगभग 170 लोग की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोगों के लापता होने की भी खबर आई थी। 750 लोगों की आबादी वाला यह गांव गांव करीब 30-35 फीट चौड़े कीचड़ और मलबे में धंसकर रातों-रात गायब हो गया था।
2013 केदारनाथ: केदारनाथ धाम में 16-17 जून, 2013 को विनाशकारी भू-स्खलन हुआ था। दरअसल, चोराबारी ग्लेशियर पर बनी प्राकृतिक झील की बर्फीली दीवार टूटने से फ्लैश फ्लड आई और केदारनाथ धाम से लेकर हरिद्वार तक (करीब 250 किलोमीटर दूर) तबाही और बर्बादी देखने को मिली। यह देश की सबसे भयानक प्राकृतिक आपदाओं में से एक है। उत्तराखंड के चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिलों में उस रात भयानक बारिश के बाद फ्लैश फ्लड और भूस्खलन से अलकनंदा, भागीरथी और मंदाकिनी नदियों ने रौद्र रूप धारण किया। गोविंदघाट, भींडर, केदारनाथ, रामबाड़ा और उत्तरकाशी धराली जैसे इलाके नक्शे से ही गायब हो गए। इन इलाकों में 10 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई। हजारों लोग तो मिले ही नहीं। वायुसेना की मदद से 1.10 लाख से ज्यादा लोगों को बचाया गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस त्रासदी में 4,200 से अधिक गांव पानी में बह गए।
1998 मापला (उत्तर प्रदेश): भू-स्खलन की एक और विनाशकारी घटना उत्तर प्रदेश के मापला में 17 अगस्त 1998 को घटी। सात दिनों तक लगातार बारिश के बाद हुए भू-स्खलन में 380 से अधिक लोगों की मौत हो गई और पूरा गांव दफन हो गया। तब मालपा में 9 परिवार रहते थे। 14 रहने और खाने के होटल थे। यह घटना देश के इतिहास में सबसे विनाशकारी मानवीय त्रासदियों में से एक थी।
1968 दार्जिलिंग: पश्चिम बंगाल के सुंदर शहर दार्जिलिंग में 4 अक्तूबर, 1968 को भू-स्खलन के बाद विनाशकारी बाढ़ आई। इस विनाशकारी आपदा में 1000 से अधिक लोग मारे गए और करोड़ों का नुकसान हुआ।
1948 गुवाहाटी: सितंबर, 1948 को असम के गुवाहाटी में भारी बारिश के बाद अचानक हुए भू-स्खलन के बाद भारी तबाही आई। पूरा गांव इस त्रासदी में दफन हो गया। इस भयानक आपदा में 500 से अधिक लोग मलबे में जिंदा दफन हो गए।
क्यों भारत में बढ़ रहे हैं भूस्खलन के मामले?
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority) की माने तो भारत अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से अधिक संवेदनशील हैं। इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) Indian Space Research Organisation (ISRO) की तरफ से जारी भारत एटलस तस्वीरों से कुछ स्थानों को सूचीबद्ध किया गया है जिसमें पता चलता हैं कि भारत का लगभग 12. 6 प्रतिशत हिस्सा भूस्खलन के प्रति संवेदनशील हैं। इसमें ज्यादत्तर हिस्से पहाड़ी हैं। देश में भूस्खलन की ज्यादातर घटनाएं हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, और केरल जैसे पहाड़ी राज्यों में होती हैं।
अगर भूस्खलन जैसी स्थिति बनें तो क्या करना चाहिए?
भूस्खलन ज्यादात्तर पहाड़ी क्षेत्रों में होते है। यहां पर ढलानों या चट्टानों की मिट्टी अचानक से तेज बहाव में खिसक जाती है और जमीन ढह जाती हैं। इसे ही भूस्खलन या Landslide कहते हैं। यह सब धरती के अंदर होने वाली हलचल की वजह से होता है। बारिश के दिनों में भूस्खलन की घटनाएं जयादा होती हैं, जिसमें भारी जान-माल का नुकसान होता है।
भूस्खलन होने की वजह
भूस्खलन होने की वजह के कई कारण होते हैं। यह प्राकृतिक और मानवीय दोनों ही हो सकती हैं। प्राकृतिक कारणों में जहां भूकंप और मूसलाधार बारिश की वजह से भी जमीन और पहाड़ खिसकने लगते हैं। वहीं मानवीय कारण में पेड़ों की कटाई सबसे मुख्य वजह में शामिल हैं। दरअसल, पेड़ की जड़ें मिट्टी और चट्टानों को जमाकर रखती हैं। मगर पेड़ काटने की वजह से चट्टानों की पकड़ ढीली हो जाती है। यही वजह हैं कि भूस्खलन की घटनाएं घटती है।
भूस्खलन की स्थिति में क्या करें?
मौसम विभाग की जानकारी के बाद कहीं घूमने के बारे में सोचें।
भूस्खलन के खतरों वाली जगहों पर ना रुकें।
नालों की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
कूड़ा इकट्ठा होने पर तुरंत हटाएं, जिससे पानी की निकासी होते रहें।
पेड़-पौधों का ज्यादा से ज्यादा लगाएं, जिससे चट्टानों की पकड़ मजबूत रहे।
लैंडस्लाइड का खतरा महसूस होने पर सुरक्षित क्षेत्रों में चले जाएं।
घायल और फंसे हुए व्यक्तियों की मदद करें।
भूस्खलन की स्थिति में क्या न करें?
पहाड़ी इलाको में सोच-समझकर निर्माण क्षेत्र करें और संवेदनशील इलाकों में रहने से बचें।
बिजली के तार या खंभे को न छुएं।
खड़ी ढलानों के पास और जल निकासी मार्ग के पास घर न बनाएं।
नदियों, झरनों, कुओं से सीधे दूषित पानी न पिएं।
सीधे एकत्रित किया गया बारिश का पानी पी सकते हैं।
आसपास लैंडस्लाइड की खबरे सुनने के बाद भी डेंजरर्स जोन में न रहें।
इन तरीकों से टाल सकते हैं भूस्खलन के जोखिम
पहाड़ी इलाके पर घर बनाने से पहले मकान को सही तरीके से नक्शे के साथ बनवाना चाहिए।
पहाड़ी इलाकों में सीढ़ीनुमा खेती करने भूस्खलन के खतरे जोखिम कम होता है।
भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों में सेंसर और अलर्ट सिस्टम लगाएं।
ढलानों पर पेड़ और झाड़ियां लगाने से बारिश या पानी के तेज बहाव में मिट्टी जल्दी से कटती नहीं है।
जीआईएस और रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग कर भी इस प्राकृतिक आपदा से बचा जा सकता है।
संकलनकर्ता: सोमसी देष्टा-शिमला
Himachal News
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