सोमसी देष्टा
हिमाचल प्रदेश को कुदरत ने असीम खूबसूरती से नवाज़ा है। हिमाचल प्रदेश के चंबा जिला का भरमौर (Bharmour) किसी जन्नत से कम नहीं है। बर्फ़बारी के समय इस जगह की खूबसूरती चरम पर होती है। देवदार के जंगलों और पीर-पंजाल की पहाड़ियों के बीच बसा यह प्राचीन और खूबसूरत कस्बा रावी और चिनाब नदी की आवोहवा से हमेशा तरोताजा रहता है।
भरमौर का इतिहास और सभ्यता 1,400 वर्षों से भी पुराना है। भरमौर ने वास्तुकला और सांस्कृतिक गौरव का एक सुनहरा समय देखा है, यह आपको विशाल चौरासी मंदिर परिसर को पहली बार देखते ही समझ आ जाएगा जो 84 मंदिरों की एक विशाल मंदिर शृंखला है। भरमौर के स्थापत्य और सांस्कृतिक भव्यता को दर्शाते यहां के कई प्राचीन मंदिर 10वीं शताब्दी में स्थापित किये गये थे।
भरमौर को पहले ब्रह्मपुरा के नाम से जाना जाता था। माना जाता है कि भरमौर भरमाणी देवी के बाद ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है। कई सौ साल पहले जब चंबा राज्य उत्तराखंड और जम्मू के क्षेत्रों में फैला था, तब भरमौर को ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता था।
चंबा ज़िले की प्राचीन राजधानी होने के साथ-साथ इसे ‘शिवभूमि’ के रूप में भी जाना जाता है। यह माना जाता है कि भगवान शिव कैलाश पर्वत पर निवास करते थे। यहां भगवान शिव को समर्पित 100 से भी अधिक मंदिर है। बोलचाल के अनुसार, भरमौर के स्थानीय लोगों को, यहां पाए जाने वाले कई सारे पूजनीय शिव मंदिरों के कारण कैलाशवासी (शिव के घर, पर्वत कैलाश के निवासी) भी कहा जाता है।
भरमौर में हरे-भरे रोलिंग घास वाले मैदान भी हैं, जिन्हें चरवाहों के द्वारा चारगाह की भूमि के रूप में उपयोग किया जाता है। भरमौर के लोगों का स्वभाव गर्मजोशी से भरा और दोस्ताना है।
प्राचीन मंदिरों के अलावा भरमौर को धौलाधर और शिवालिक पहाड़ियों में कई रोमांचकारी ट्रेकिंग स्थलों के प्रवेश द्वार के रूप में भी जाना जाता है।
चौरासी मंदिर भवन
1,400 से भी अधिक वर्ष पूर्व स्थापित चौरासी मंदिर परिसर को यह नाम उन 84 तीर्थस्थलों से मिला है, जो भरमौर के बीच में बने हैं। चौरासी का शाब्दिक रूप से हिंदी में नम्बर 84 का अनुवाद है। किंवदंती के अनुसार कई हजार साल पहले इस मार्ग पर 84 सिद्धि भगवान शिव का ध्यान करते थे। इन चौरासी सिध्दियों में मुख्य देवी-देवता देवी लक्ष्मणा, भगवान गणेश और भगवान मणिमहेश हैं। चौरासी मंदिर परिसर में मणिमहेश मंदिर सबसे अधिक महत्व रखता है, क्योंकि यह भगवान शिव को समर्पित है और यह सभी मंदिरो में सबसे पुराना है। यहां के अन्य मंदिर विष्णु, हनुमान, लक्ष्मी नारायण, गणेश और अन्य देवी देवताओं को समर्पित हैं। भगवान गणेश को समर्पित मंदिर वर्मन साम्राज्य के मेरू वर्मन द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर में वर्मन साम्राज्य की वास्तुकला देखने को मिलती है। मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। मंदिर के बाहरी दरवाजे पर लकड़ी की उत्कृष्ट नक्काशी की गई है। मां महिशासुरमर्दनी के ही एक स्वरूप की तरह लक्षणा देवी की मूर्ति की चार भुजाएं हैं।
भरमाणी माता मंदिर परिसर
चीड़ और देवदार के पेड़ों के बीच स्थित भरमाणी माता मंदिर परिसर मुख्य रूप से देवी भवानी माता को समर्पित है, जो दुर्गा के अवतार में से एक है। इन्हें भरमौर की संरक्षक देवी के रूप में भी जाना जाता है। माना जाता है कि भरमौर भरमाणी देवी के बाद ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है। भरमौर के मुख्य शहर से 4 कि.मी. की दूरी पर स्थित भरमाणी मंदिर का पवित्र कुंड चंबा क्षेत्र के सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर की ओर जाने से पहले मणिमहेश झील में एक डुबकी लगाना मंगलमय होता है।
भरमौर के झरने
भरमौर न केवल मंदिरों से घिरा है, बल्कि यहां चारों ओर लुभावने झरने भी मौजूद हैं। काकसेन-भागसेन जुड़वा वॉटरफॉल भरमौर से लगभग 18 कि.मी. दूर धारोल के पास कुगती वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी में मौजूद है। कहा जाता है कि ये झरना कलयुग में पापों के भरते घड़े को दर्शाता है। भरमौर के बाहरी इलाके में कई अन्य छोटे झरने भी हैं जैसे गेदेड, हडसर, थाला और सतहाली झरने। ये सभी मुख्य शहर से 10 कि.मी. से कम दूरी पर हैं।
मणिमहेश का प्रवेश द्वार
भरमौर मणिमहेश का प्रवेश द्वार भी है। मणिमहेश भरमौर से लगभग 20 किमी की दूरी पर है। मणिमहेश एक पवित्र झील है। यह समुद्रतल से 4080 मीटर (13,500 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है और हिमालय में पीर पंजाल पर्वत श्रेणी कैलाश पर्वत के करीब है। माना जाता है कि इस झील का धार्मिक महत्व मानसरोवर के बाद आता है। कहा जाता है कि इस झील में जो भी डुबकी लगाता है उसके सभी पाप धूल जाते हैं।
कब करें भरमौर की यात्रा
भरमौर का मौसम पूरे साल ठंडा रहता है लेकिन हिमाचल प्रदेश के अन्य स्थानों की तरह यहां पर भी यात्रा करने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून तक होता है। साल के अन्य महीनों की तरह इस समय यहां ज्यादा ठंड नहीं पड़ती है। लेकिन अगर आप हिमपात यानी बर्फबारी देखना चाहते हैं, तो दिसम्बर से फरवरी के दौरान यहां की यात्रा कर सकते हैं। इस समय यहां का तापमान -10 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।
कैसे जाएं
भरमौर चंबा से सिर्फ 60 कि.मी. दूर है जहां रावी घाटी की खतरनाक पहाड़ी सड़कों के ज़रिये दो घंटे की सड़क यात्रा के बाद पहुंचा जा सकता है।
वायु मार्ग से: धर्मशाला का कांगडा हवाई अड्डा भरमौर शहर के सबसे करीब है। यह लगभग 180 किमी की दूरी पर है। इस हवाई अड्डे पर दिल्ली, ग्वालियर, इंदौर और वारणसी जैसे शहरों से उड़ाने भरी जाती हैं।
रेल मार्ग से: पठानकोट रेलवे स्टेशन और चक्की बैंक रेलवे स्टेशन भरमौर के सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। इनकी दूरी करीबन 180 किमी है। इस स्टेशन पर बड़े-बड़े शहरों जैसे जम्मू, धौलाधर, भटिंडा, दिल्ली आदि से ट्रेने आती हैं।
सड़क मार्ग से: भरमौर, हिमाचल प्रदेश के अन्य शहरों जैसे चम्बा, डलहौज़ी, कांगडा आदि से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। भरमौर जाने के लिए टैक्सी और अंतर्राज्यीय बसें नियमित रूप से उपलब्ध हैं।
कहां ठहरें?
भरमौर में कई गेस्टहाउस हैं, लेकिन आप उनमें से कुछ पर ही ऑनलाइन बुकिंग करवा सकते हैं। यहां रहने के लिए एक पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस भी है। इसकी उपलब्धता की जाँच करने के लिए 01895225003 पर संपर्क करें।
Posted By: Himachal News