अनुलोम विलोम अर्थात नाड़ी शोधन प्राणायाम
“अनुलोम-विलोम” यानी श्वांस छोड़ना व भरना। यह श्वांस संबंधित एक सशक्त प्राणायाम है। अनुलोम का अर्थ होता है सीधा और विलोम का अर्थ है उल्टा। यहां पर सीधा का अर्थ है नासिका या नाक का दाहिना छिद्र और उल्टा का अर्थ है-नाक का बायां छिद्र। अर्थात् अनुलोम-विलोम प्राणायाम में नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचते हैं, तो बायीं नाक के छिद्र से सांस बाहर निकालते है। इसी तरह यदि नाक के बाएं छिद्र से सांस खींचते है, तो नाक के दाहिने छिद्र से सांस को बाहर निकालते है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम को कुछ योगीगण ‘नाड़ी शोधक प्राणायाम’ भी कहते हैं। उनके अनुसार इसके नियमित अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शोधन होता है यानी वे स्वच्छ व निरोगी बनी रहती है। इस प्राणायाम के अभ्यासी को वृद्धावस्था में भी गठिया, जोड़ों का दर्द व सूजन आदि शिकायतें नहीं होतीं।
हमारे शरीर के अंदर सूक्ष्म और अति सूक्ष्म नाड़ियां होती है। वहां तक प्राणवायु पहुंचना बहुत मुश्किल या धीमा होता है। नाड़ी शोधन प्राणायाम या कोई भी प्राणायाम हम उन नाडियों तक प्राणवायु पहुंचाने के लिए और उन नाडियों को शुद्ध करने के लिए करते हैं। योगाभ्यास प्रारंभ करने से पहले कम से कम 3 महीने से 6 महीने तक नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए जिससे नाड़ियां शुद्ध होके, शरीर योग के लायक और व्याधियों रहित बन सके।
इससे हमारा पूरा श्वसन तंत्र बलशाली बनता है, रक्त में आक्सीजन का लेवल बढ़ जाता है व शरीर से विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। चित शांत होता है, इम्युनिटी बढ़ती है, एंग्जाइटी कंट्रोल होती है व अच्छी नींद आती है। शरीर के लिए अनुलोम विलोम अपने आप में एक पूर्ण प्राणायाम है।
कैसे करें अनुलोम-विलोम प्राणायाम योग
अपनी सुविधानुसार पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठ जाएं। दाहिने हाथ के अंगूठे से नासिका के दाएं छिद्र को बंद कर लें और नासिका के बाएं छिद्र से 4 तक की गिनती में सांस को भरे और फिर बायीं नासिका को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से बंद कर दें। तत्पश्चात दाहिनी नासिका से अंगूठे को हटा दें और दायीं नासिका से सांस को बाहर निकालें।
– अब दायीं नासिका से ही सांस को 4 की गिनती तक भरे और दायीं नाक को बंद करके बायीं नासिका खोलकर सांस को 8 की गिनती में बाहर निकालें।
-शुरुआत और अन्त भी हमेशा बायीं नासिका से करें।
– इस प्राणायाम को 5 से 15 मिनट तक कर सकते हैं।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम योग के फायदे
नाड़ी शोधन प्राणायाम के लाभ जितने बताए जाएं उतने कम है फिर भी मुख्य लाभ यह है।
यह हमारी नाड़ियों से गंदगी बाहर कर उनको शुद्ध करता है।
सूक्ष्म से सूक्ष्म नाडियो तक प्राण वायु पहुंचाने का काम करता है।
जो नाडिया ब्लॉक हो गई है वहां तक प्राणवायु पहुंचाकर उन्हें जागृत करता है।
हमारे शरीर में नई स्फूर्ति लाता है।
आलस्य, क्रोध, चिंता, मुक्त करता है।
समस्त रोगों का नाश कर शरीर को स्वस्थ और बल प्रदान करता है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम करने से 72000 नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है।
जब नाडी शुद्ध और निर्मल हो जाती हैं तब शरीर निश्चित रूप से पतला और कांतिमान हो जाता है।
नाडिया निर्मल होने से साधक स्वास को रोक सकता है (कुंभक कर सकता) जिससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है और आरोग्य लाभ प्राप्त होता है।
वायु से होने वाले रोगों का नाश होता है जैसे हिचकी, दमा, खांसी, सिर, कान और आंखों में पीड़ा।
फेफड़े शक्तिशाली होते हैं।
सर्दी, जुकाम व दमा की शिकायतों से काफी हद तक बचाव होता है।
हृदय बलवान होता है।
हार्ट की ब्लोकेज खुल जाते हैं।
गठिया के लिए फायदेमंद है।
मांसपेशियों की प्रणाली में सुधार करता है।
पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है।
तनाव और चिंता को कम करता है।
पूरे शरीर में शुद्ध ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है।
रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) उचित रखता है।
यादाश्त बढती है।
रोग-प्रतिरोधक शक्ती बढ़ जाती है।
दमा का रोग जड़ से चला जाता है।
किसी भी प्रकार की एलर्जी जड़ से खत्म हो जाती है।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम योग करते समय बरतें ये सावधानियां
– कमजोर और एनीमिया से पीड़ित रोगी इस प्राणायाम के दौरान सांस भरने और सांस निकालने (रेचक) की गिनती को क्रमश: चार-चार ही रखें। अर्थात् चार गिनती में सांस का भरना तो चार गिनती में ही सांस को बाहर निकालना है। फिर 1:2 का अनुपात यानि 4 की गिनती तक सांस भरे और 8 की गिनती में बाहर निकालें।
– स्वस्थ व्यक्ति धीरे-धीरे यथाशक्ति पूरक-रेचक की संख्या बढ़ा सकते हैं।
– कुछ लोग समयाभाव के कारण सांस भरने और सांस निकालने का अनुपात 1:2 नहीं रखते। वे बहुत तेजी से और जल्दी-जल्दी सांस भरते और निकालते है। इससे वातावरण में व्याप्त धूल, धुआं, जीवाणु और वायरस, सांस नली में पहुंचकर अनेक प्रकार के संक्रमण को पैदा कर सकते हैं।
– अनुलोम-विलोम प्राणायाम करते समय यदि नासिका के सामने आटे जैसी महीन वस्तु रख दी जाए, तो पूरक व रेचक करते समय वह न अंदर जाए और न अपने स्थान से उड़े। अर्थात् सांस की गति इतनी सहज होनी चाहिए कि इस प्राणायाम को करते समय स्वयं को भी आवाज न सुनायी पड़े।
– सांस लेते समय अपना ध्यान दोनों आंखों के बीच में स्थित आज्ञा चक्र पर एकत्र करना चाहिए।
कब करें?
आप अगर स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास करना चाहते हैं, सुबह खाली पेट करना सर्वोत्तम होता है। शाम को किसी भी समय नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास करें, और कम से कम 9 राउंड और अधिक से अधिक अपनी क्षमता के अनुसार कर सकते हैं। रात्रि में सोने से पहले अच्छी, सुखद व शांत नींद के लिये कर सकते हैं। जब भी कभी भय, अशांत चित की स्थिति या घबराहट हो उस समय प्राणायाम करें।
विशेष: प्राणायाम करते समय पसीना निकलता है उसका शरीर में मर्दन (मालिश) करनी चाहिए ऐसा करने से शरीर में शक्ति स्फूर्ति आती है।
योगाभ्यास प्रारंभ करने से पहले नाड़ी शोधन प्राणायाम अवश्य करना चाहिए जिससे योग की अनंत गहराइयों में जाया जा सके।
नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास नाडियों को शुद्ध करने के लिए और योग की गहराइयों में जाने के लिए 24 घंटे में 4 बार 10 से 20 आवर्तीआ करना चाहिए सुबह, दोपहर,शाम और रात्रि को। अगर आप ऐसा करते हैं तो आपको सुपाच्य और बहुत ही हल्का और बार बार खाना, खाना चाहिए। जिससे अगले अभ्यास में कोई परेशानी ना हो, अगले अभ्यास करने के लिए 3 घंटे का अंतराल जरूरी है। ऐसा करने से 3 महीने में ही आपकी समस्त नाड़ियां शुद्ध हो चुकी होंगी।
विनोद वर्मा: योग प्रशिक्षक
Posted By : Himachal News
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