कुल्लू (Kullu) घाटी अपने मंदिरों, चीड़ व देवदार से ढके उंचे पहाड़ों और सेब के बाग़ान के लिए जानी जाती है। कुल्लू घाटी पीर पंजाल पर्वतमाला और मध्य हिमालय व महान हिमालय के बीच सटी हुई है। कुल्लू शहर कुल्लू घाटी में मुख्य नगर है और यह कुल्लू ज़िले का मुख्यालय भी है।
व्यास नदी के तट पर बसा कुल्लू एक ख़ूबसूरत शहर है। कुल्लू की ख़ूबसूरती और हरियाली बरसों से पर्यटकों को अपनी ओर खींचती आई है। कुल्लू की वादियां, प्राकृतिक वातावरण, ट्रैकिंग के लिए उपयुक्त जगहें, धार्मिक स्थान आदि सभी इसे एक आदर्श हिल स्टेशन बनाती हैं। यहां चारों तरह फैली हरियाली के बीच फूलों का नजारा एकदम फिल्मी लेकिन हकीकत जैसा होता है। कुल्लू को देवताओं की घाटी भी कहा जाता है। मान्यता है कि यहां देवता वास करते थे।
यहां का दशहरा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। जब पूरे देश में दशहरा समाप्त हो जाता है, तब यहां दशहरा शुरु होता है। खरीददारी करने के लिए कुल्लू में बहुत सारी जगहें हैं। कुल्लू में हैंडीक्राफ्ट्स के साथ ड्राई-फ्रूट्स और गर्म कपड़े आदि खरीदे जा सकते हैं।
समुद्रतल से करीब 1279 मीटर ऊंचाई बसे कुल्लू में आजादी से पहले पहुंचना बेहद मुश्किल था। लेकिन आजादी के बाद कुल्लू को वास्तविक पहचान मिली। सिनेमा ने इस जगह को आम लोगों के बीच बेहद प्रसिद्ध बनाया।
कुल्लू का इतिहास
कुल्लू को पहले कुलांत पीठ कहा जाता था। कुलांतपीठ का शाब्दिक अर्थ है “रहने योग्य दुनिया का अंत”। कुल्लू का वर्णन रामायण, महाभारत, विष्णु पुराण जैसे महाकाव्यों में भी मिलता है। कहा जाता है कि कुल्लू की खोज त्रिपुरा निवासी “विहंगमणि पाल” ने की थी। कुलूत नाम का वर्णन अन्यान्य अपभ्रंशों के साथ जोड़ा जाता है। विद्या चंद ठाकुर द्वारा कुल्लू नाम के विषय मे विस्तार से लिखा गया है, जिसके अनुसार वामन पुराण, महाभारत के कर्ण पर्व, कुलांतपीठ महात्म्य के अंतर्गत कुल्लू नाम से मिलते जुलते नामों का उल्लेख किया गया है। वहीं, कोलासुर, कुलौंउत राक्षस तथा कोली समुदाय से कुल्लू नाम के उध्दृत होने की संभावना भी प्रकट की गई है। इसी प्रकार विद्या चंद ठाकुर जी के अलावा भी सभी देशी-विदेशी साहित्यकारों ने इन्हीं सन्दर्भों के आधार पर कुल्लू का नाम कुल्लू होने की संभावना व्यक्त करते हुए इस स्थान की कथा को आगे बढ़ाया है। जहां तक सम्भावना और अनुमान की बात है, इस स्थान विशेष के लिए चीनी यात्री ह्वेन शांग द्वारा सम्बोधित नाम ‘क्लू-तो’ हमे इस नाम के एक अलग पक्ष को देखने पर मजबूर करता है।
Kullu: रघुनाथ मन्दिर
कुल्लू मध्यकालीन समय में राजपूत राजाओं के शक्तिशाली राज्य का एक हिस्सा था। 17वीं शताब्दी में निर्मित सुल्तानपुर का रघुनाथजी मंदिर हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थान है। रघुनाथ जी के इस मंदिर का निर्माण 1660 ई० में राजा जगत सिंह ने अपने पापों से छुटकारा पाने के लिए करवाया था। कुल्लू में स्थित यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है, जहां दर्शन करने कुल्लू जाने वाले काफी संख्या में पर्यटक जाते हैं।
Kullu: सुल्तानपुर पैलेस
कुल्लू के राजाओं की प्राचीन राजधानी कुल्लू शहर से लगभग 12 किमी उत्तर में नग्गर में थी। माना जाता है कि इसे 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में राजा सिद्ध सिंह ने बनवाया था। राजा जगत सिंह 17वीं शताब्दी के मध्य में राजधानी को कुल्लू शहर के सुल्तानपुर में स्थापित किया। वादियों के बीच में मौजूद सुल्तानपुर पैलेस (महल) बेहद ही खूबसूरत है। यह महल ‘रूपी पैलेस’ के नाम से भी जाना जाता है। कुल्लू में अगर आप मध्य कालीन वास्तुकला को करीब से देखना चाहते हैं तो यहां जा सकते हैं। इस महल के आसपास मौजूद हरियाली और उंचे-उंचे पहाड़ काफी सुंदर है। साल 1905 में आए भूकंप के चलते इस पैलेस का कुछ हिस्सा नष्ट हो गया था लेकिन, बाद में इसका फिर से निर्माण किया।
Kullu: यहां है चंडीगढ़ और लंका
कुल्लू शहर में एक स्थान का नाम चंडीगढ़ है। कुल्लू का चंडीगढ़ सरवरी पुल के समीप है। इसके आलावा यहां एक स्थान का नाम लंकाबेकर है, जहां दशहरा समाप्त होने पर लंका जलाई जाती है। कुल्लू शहर में गांधीनगर, शास्त्रीनगर, दुर्गानगर, रामशिला, सुल्तानपुर, सरवरी, ढालपुर, लोअर ढालपुर, महंतबेहड़, बालाबेहड़, कोलीबेहड़ और अखाडा बाज़ार मुख्य कस्बें हैं।
कुल्लू शहर में मनाए जाने वाले उसव
कुल्लू का अंतर्राष्ट्रीय दशहरा उत्सव: कुल्लू का दशहरा सबसे अलग और अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। कुल्लू का दशहरा पर्व, परंपरा, रीतिरिवाज और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है। सात दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार को यहां विदा दशमी (विजय दशमी) कहते हैं। जब पूरे भारत में विजयदशमी या दशहरा की समाप्ति होती है उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव को मनाया जाता है। कुल्लू में विजयदशमी के पर्व मनाने की परंपरा राजा जगत सिंह के समय से मानी जाती है। यहां के दशहरे को लेकर एक कथा प्रचलित है- जिसके अनुसार एक साधु कि सलाह पर राजा जगत सिंह ने ब्रम्हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए अयोध्या से एक मूर्ति लाकर कुल्लू में रघुनाथ जी की स्थापना करवाई थी और अपना सारा राजपाट रघुनाथ जी को समर्पित किया। कुल्लू का दशहरा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस पर्व के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम और अंतर्राष्ट्रीय नृत्य पर्व का आयोजन किया जाता है।
Kullu: पीपल जातर (वसंतोत्सव): कुल्लू शहर में हर साल 16 बैसाख को ढालपुर मैदान में वसंतोत्सव मनाया जाता है। वसंतोत्सव का पारंपरिक नाम ‘पीपल जातर’ है या इसे ‘राय री जाच’ भी कहा जाता है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में कुल्लू के राजा अपने मंत्रियों के साथ राजमहल को छोडकर यहां पीपल के पीड के नीचे बैठकर अपनी राय (प्रजा) की समस्या सुनते और उनका समाधान करते। इस अवसर पर प्रजा द्वारा पारंपरिक नृत्य आयोजित किया जाता था। बैसाख कुल्लू घाटी में वसंत ऋतु का महीना होता है, तो मेले का नाम बदलकर वसंतोत्सव रखा गया है। अब यह मेला 28 अप्रैल से 30 अप्रैल तक हर साल आयोजित किया जाता है। व्यापार के दृष्टिकोण से यह भी बहुत महत्वपूर्ण है। लाहौल के लोग घाटी में ठंडे गुजरने के बाद अपने मूल स्थान पर लौटना शुरू कर देते हैं।
कुल्लू में होने वाले साहसिक खेल
कुल्लू शहर में होने वाला पैराग्लाइडिंग और रिवर राफ्टिंग काफी प्रसिद्ध है। पैराग्लाइडिंग और रिवर राफ्टिंग के लिए देश-विदेश के विभिन्न शहरों से हर साल लाखों पर्यटक यहां आते हैं। कुल्लू में व्यास नदी पर ही रिवर राफ्टिंग की जाती है। अगर आप रिवर राफ्टिंग और पैराग्लाइडिंग जैसी एडवेंचर एक्टिविटीज करना चाहते हैं, तो कुल्लू जाने पर आप वहां के ट्रैवल एजेंसी से इन एडवेंचर एक्टिविटीज की बुकिंग करवा सकते हैं। कुल्लू में आपको इन एडवेंचर एक्टिविटीज के कई सारे एजेंट्स भी देखने को मिल जाएंगे।
Kullu: कैसे जाए
वायु मार्ग: निकटतम हवाईअड्डा कुल्लू-मनाली एयरपोर्ट कुल्लू से करीब 11 किलोमीटर दूर है। हवाईअड्डे से कुल्लू के लिए बस और टैक्सी मिलती हैं। शिमला एयरपोर्ट कुल्लू से करीब 211 किमी दूर है।
रेलवे स्टेशन: जोगिन्दर नगर रेलवे स्टेशन कूल्लू से मात्र 125 किमी दूर है। चण्डीगढ़ रेलवे स्टेशन से कुल्लू करीब 270 किमी पड़ता है। चण्डीगढ़ के लिए देश के हर कोने से ट्रेन सेवा है। कालका रेलवे स्टेशन से कुल्लू करीब 237 किमी है।
सड़क मार्ग: शिमला और धर्मशाला समेत हिमाचल प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों से कुल्लू के लिए हिमाचल प्रदेश सड़क परिवहन निगम की बस सेवा है। आप चाहें तो टैक्सी भी कर सकते हैं। कुल्लू दिल्ली, चंड़ीगढ़, पठानकोट, देहरादून आदि से भी सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा है।
रिपोर्ट: सोमसी देष्टा
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