सोमसी देष्टा: शिमला
हिमाचल न्यूज़ | सुगंधित फूलों का नाम सुनते ही खुशबू का अहसास होने लगता है। जब फूलों की खेती से स्वरोजगार मिलने लगे तो चेहरे पर मुस्कान बरबस ही आ जाती है। ऐसा ही एक पौधा है लैवेंडर। जो महक के साथ-साथ आपकी कमाई का भी अच्छा जरिया बन सकता है। लैवेंडर के पौधे को न ही जंगली जानवर व बंदर खराब करते हैं और न ही किसी भी प्रकार की खाद की जरूरत पड़ती है।
लैवेंडर की खेती को बैंगनी क्रांति (पर्पल रिवॉल्यूशन) के रूप में भी जाना जाता है। लैवेंडर के फूल, तेल, नर्सरी के साथ-साथ लैवेंडर के पत्ते भी आमदनी का साधन है। इस खेती को यदि वैज्ञानिक तरीके से किया जाए तो काफी लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
लैवेंडर की खेती बीजों की बुवाई एवं कलम रोपाई दोनों रूप में की जा सकती है। साथ ही जलवायु भूमि प्रबंधन, उपयुक्त मिट्टी एवं बुवाई के तरीके जैसी मुख्य जानकारी का होना फसल में हमेशा ही लाभ को बढ़ाते हुए आया है।
जम्मू-कश्मीर में होती है लैवेंडर की उन्नत फसलें
लैवेंडर की खेती जम्मू-कश्मीर में किसानों के लिए वरदान साबित हुई है। जम्मू कश्मीर के लगभग सभी जिलों में लैवेंडर की खेती की जाती है। बीते कई वर्षों से चली आ रही इस खेती ने न केवल कई प्रकार के उत्पादों के निर्माण में अपना योगदान दिया है, बल्कि इसकी तरह-तरह की किस्मों की खेती से किसानों ने भी आय में भरपूर मुनाफा कमाया है।
हिमाचल प्रदेश में लैवेंडर की खेती की सम्भावना
हिमाचल प्रदेश सरकार, केंद्र सरकार के सहयोग से राज्य में अरोमा मिशन पर कार्य कर रही है। इससे किसानों को कृषि क्षेत्र में नवीन तकनीकों की जानकारी उपलब्ध होगी तथा वह अपनी उपज की गुणवत्ता में सुधार लाकर अधिक आय अर्जित करने में सक्षम होंगे। सरकार की इस पहल से राज्य के किसानों को आय का एक नया लाभदायक स्रोत प्राप्त होगा। जिला चम्बा सहित कई क्षेत्रों की जलवायु परिस्थितियां जम्मू-कश्मीर के समान होने के कारण हिमाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में लैवेंडर की खेती को बड़े पैमाने होने की सम्भावना है।
लैवेंडर की उन्नत किस्में
ये किस्में पौधों की ऊंचाई, फूलों के रंग और तेल मात्रा के आधार पर भिन्न होती हैं। इसके अलावा क्षेत्र के आधार पर भी ये किस्में अलग-अलग मात्रा में पैदावार देने के लिए जानी जाती हैं।
लेडी लैवेंडर: यह किस्म लैंवेडर की बौनी किस्मों में से एक है। पौधों की लम्बाई 40 से 45 सेंटीमीटर तक होती है एवं पौधों पर नीले रंग के फूल देखने को मिलते हैं। यह किस्म के पौधे चौड़ाई में न फैल कर लंबाई में अधिक वृद्धि करते हैं साथ ही किसान इस किस्म को लगाकर 20 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से तेल का उत्पादन पा सकते हैं।
बीच वुड ब्लू: लैंवेडर की यह किस्म सबसे अधिक तेल उत्पादन वाली किस्मों में से एक है। इस किस्म के पौधे 2 फीट तक लंबे हो सकते हैं, जिन पर बैंगनी नीले रंग के फूल निकलते हैं। इस किस्म की खेती कर किसान प्रति एकड़ 26 किलोग्राम तक तेल की पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
मेलिसा लिलाक: अधिक लंबाई वाले पौधों की श्रेणी में आने वाली यह किस्म 60 से 75 सेंटीमीटर तक वृद्धि करती है। इस किस्म के पौधे हल्के लाल रंग के होते हैं और अन्य किस्मों की अपेक्षा आकार में भी बड़े होते हैं। इस किस्म से प्रति एकड़ 22 से 24 किलोग्राम तक तेल प्राप्ति की जा सकती है।
रोजा लैवेंडर: यह गुलाबी रंग वाली फूलों की एक किस्म है। जिसके पौधे 40 सेंटीमीटर तक बढ़ सकते हैं। बौनी प्रजाति के अंतर्गत आने वाली इस किस्म की खेती से प्रति एकड़ 10 से 20 किलोग्राम तेल प्राप्त किया जा सकता है।
भोर ए कश्मीर लैवेंडर: 2 फीट से अधिक पौधों की लंबाई वाली यह किस्म किसानों की पसंदीदा किस्मों में से एक है। इस किस्म के फूल नीले रंग के होते हैं एवं प्रति एकड़ 32 किलोग्राम तेल उपज दे सकते हैं।
एक साल में होती है तीन फसलें
लैवेंडर के पौधे का कोई भाग व्यर्थ नहीं जाता है। साल में लैवेंडर की खेती की 3 फसलें होती हैं। जून माह में लैवेंडर की भरपूर फसल होती है, अक्तूबर माह और फरवरी माह में भी फसल निकलती है।
तेल बेचकर एक साल में कमाए जा सकते हैं लाखों रुपए
लैवेंडर की खेती के साथ ऑयल डिस्टलेशन यूनिट भी स्थापित किया जा सकता है, जहां पर आप खुद ही तेल निकाल सकते हैं। लैवेंडर के एक क्विंटल पौधों से लगभग एक से डेढ़ किलोग्राम तेल निकलता है, जिसकी कीमत लगभग 15 से 20 हजार रुपए मिल जाती है। कई कम्पनियां घरद्वार पर ही तेल खरीदती है।
लैवेंडर की खेती के साथ गुलाब के पौधों की इंटर क्रॉपिंग
लैवेंडर की खेती के साथ गुलाब के पौधों की इंटर क्रॉपिंग भी की जा सकती है। गुलाब तेल की भी बाजार में काफी मांग है और जिसकी कीमत लगभग 20 से 30 लाख रुपए प्रति किलोग्राम है। इसके साथ-साथ गुलाब के पौधे और उनकी कलमें भी अच्छी कीमत पर बिकते हैं।
लैवेंडर की खेती से जुड़ी जानकारी के लिए यहां सम्पर्क करें
लैवेंडर की खेती से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 के माध्यम से कृषि विशेषज्ञों से जुड़कर उचित सलाह लें सकते हैं। इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को शेयर करना न भूलें।
Posted By: Himachal News