Hariyali Teej: भारत में हरियाली तीज का उत्सव श्रावण मास (सावन मास) में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। मुख्यत: यह स्त्रियों का त्योहार है। इस समय जब प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर सी बिछा देती है तो प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाच उठता है। जगह-जगह झूले पड़ते हैं। स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते हैं। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ‘श्रावणी तीज’ कहते हैं। इसे ‘हरितालिका तीज’ भी कहते हैं। जनमानस में यह हरियाली तीज के नाम से जानी जाती है। समस्त उत्तर भारत में तीज पर्व बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। बुंदेलखंड के जालौन, झांसी, दनिया, महोबा, ओरछा आदि क्षेत्रों में इसे हरियाली तीज के नाम से व्रतोत्सव के रूप में मनाते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बनारस, मिर्जापुर, गोरखपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर आदि जिलों में इसे कजली तीज के रूप में मनाने की परंपरा है।
लोकगायन की एक प्रसिद्ध शैली भी इसी नाम से प्रसिद्ध हो गई है जिसे कजली कहते हैं। राजस्थान के लोगों के लिए त्योहार ही जीवन का सार है। तीज के आगमन के हर्ष में मोर हर्षित होकर नृत्य करने लगते हैं। स्त्रियां उद्यानों में लगे रस्सी के झूले में झूलकर प्रसन्नचित होती हैं तथा सुरीले गीतों से वातावरण गूंज उठता है।
तीज का आगमन भीषण ग्रीष्म ऋतु के बाद पुनर्जीवन व पुनर्शक्ति के रूप में होता है। यदि इस दिन वर्षा हो तो यह और भी स्मरणीय हो उठती है। लोग तीज जुलूस में ठंडी बौछार की कामना करते हैं। ग्रीष्म ऋतु के समाप्त होने पर काले-कजरारे मेघों को आकाश में घुमड़ता देखकर पावस के प्रारंभ में पपीहे की पुकार और वर्षा की फुहार से आभ्यंतर आनंदित हो उठता है। ऐसे में भारतीय लोक जीवन कजली या हरियाली तीज का पर्वोत्सव मनाता है। आसमान में घुमड़ती काली घटाओं के कारण ही इस त्योहार या पर्व को कजली तीज तथा पूरी प्रकृति में हरियाली के कारण तीज के नाम से जाना जाता है।
Hariyali Teej: पौराणिक महत्त्व
श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन भगवती पार्वती सौ वर्षों की तपस्या साधना के बाद भगवान शिव से मिली थीं। पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने कम उम्र में ही भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कामना कर ली थी। इसके बाद जब वह विवाह योग्य हो गईं, तो पिता हिमालय शादी के लिए योग्य वर देखने लगे। एक दिन नारद मुनि पर्वत राज हिमालय के पास गए और उनकी बात को सुनकर योग्य वर के रूप में भगवान विष्णु का नाम सुझाया। हिमालय राज को भी श्रीहरि दामाद के रूप में पसंद आए और उन्होंने अपनी रजामंदी दे दी। लेकिन इस बात को सुनकर माता पार्वती चिंतित हुई, क्योंकि उन्हें पति के रूप में शिव जी को पाना था। इसी वजह से माता पार्वती तपस्या करने के लिए जंगल में चली गईं। वहां पर उन्होंने अपनी तपस्या के द्वारा महादेव को प्रसन्न किया। भगवान शिव ने उनकी इच्छा पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया। जब पर्वतराज हिमालय को बेटी पार्वती के मन की बात पता चली, तो उन्होंने भगवान शिव से माता पार्वती की शादी के लिए तैयार हो गए। जिसके परिणाम स्वरूप माता पार्वती और भगवान शिव की शादी संपन्न हुई। तभी से हर साल सावन के महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हरियाली तीज के पर्व को मनाने की शुरुआत हुई। मां पार्वती का इस दिन पूजन विवाहित स्त्री-पुरुष के जीवन में हर्ष प्रदान करता है।
Hariyali Teej: मेहंदी रचाने का उत्सव
इस अवसर पर नवयुवतियां हाथों में मेहंदी रचाती हैं। तीज के गीत हाथों में मेहंदी लगाते हुए गाए जाते हैं। समूचा वातावरण श्रृंगार से अभिभूत हो उठता है। इस त्योहार की सबसे बड़ी विशेषता है महिलाओं का हाथों पर विभिन्न प्रकार से बेल-बूटे बनाकर मेहंदी रचाना। पैरों में आलता लगाना महिलाओं के सुहाग की निशानी है।
Hariyali Teej: मल्हार और झूलों का उत्सव
तीज के दिन का विशेष कार्य होता है खुले स्थान पर बड़े-बड़े वृक्षों की शाखाओं पर झूला बांधना। झूला स्त्रियों के लिए बहुत ही मनभावन अनुभव है। मल्हार गाते हुए मेहंदी रचे हुए हाथों से रस्सी पकड़े झूलना एक अनूठा अनुभव ही तो है। सावन में तीज पर झूले न लगें तो सावन क्या? तीज के कुछ दिन पूर्व से ही पेड़ों की डालियों पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में कड़ों में झूले पड़ जाते हैं और नारियां सखी-सहेलियों के संग सज-संवरकर लोकगीत, कजरी आदि गाते हुए झूला झूलती हैं। पूरा वातावरण ही उनके गीतों के मधुर लयबद्ध सुरों से रसमय, गीतमय और संगीतमय हो उठता है।
Hariyali Teej: राजस्थान का है विशेष उत्सव
तीज भारत के अनेक भागों में मनाई जाती है, परंतु राजस्थान की राजधानी जयपुर में इसका विशेष महत्त्व है। इस त्योहार पर लड़कियों को ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है। विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर लडक़ी को ससुराल में नहीं छोड़ा जाता है। नवविवाहिता लडक़ी की ससुराल से इस त्योहार पर सिंजारा भेजा जाता है। हरियाली तीज से एक दिन पहले सिंजारा मनाया जाता है। इस दिन नवविवाहिता लडक़ी की ससुराल से वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी और मिठाई भेजी जाती है। इस दिन मेहंदी लगाने का विशेष महत्त्व है। राजस्थान में हाथों व पांवों में भी विवाहिताएं मेहंदी रचाती हैं। इस दिन राजस्थानी बालाएं दूर देश गए अपने पति के तीज पर आने की कामना करती हैं, जो कि उनके लोकगीतों में भी मुखरित होता है।
ऐसे करें हरियाली तीज का व्रत
हरियाली तीज के दिन व्रती ब्रह्म मुर्हूत में स्नान करना चाहिए। इसके बाद इस व्रत का संकल्प लें। हरियाली तीज का व्रत पूरे विधि-विधान से करना चाहिए, तभी इसका पूरा फल मिलता है। हरियाली तीज के दिन महिलाओं को निराहार व्रत करना चाहिए। यानी इस दिन महिलाओं को कुछ भी नहीं खाना चाहिए। लेकिन, यदि कोई महिला गर्भवती है ये या बीमार है तो उन्हें इसमें छूट होती है वह फल ग्रहण कर सकती हैं। इस व्रत के दौरान सभी महिलाओं को कथा भी सुननी चाहिए। हरियाली तीज व्रत हरे रंग का प्रतीक भी है। हरा रंग हरियाली, खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। बताया जाता है कि यह रंग भगवान शिव और माता पार्वती को बहुत ही प्रिय है। इसलिए महिलाओं को इस व्रत के दौरान हरे रंग के कपड़े, हरे रंग की चूडिय़ां और हरे रंग की ही बिंदी लगानी चाहिए। मान्यता है कि इस दिन ऐसा करने से घर में सुख-शांति का वास होता है। हरियाली तीज का व्रत पारण चंद्रमा की पूजा करने के बाद ही किया जाता है।
इन नियमों का करें पालन
हरियाली तीज के व्रत के दौरान महिलाओं को व्रत धारण करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इस दिन किसी को मन, कर्म और वचन से ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए और न ही किसी को अपशब्द बोलकर उसका दिल दुखाना चाहिए। अपने पति के साथ वाद विवाद नहीं करना चाहिए। साथ ही किसी से किसी की बुराई भी नहीं करनी चाहिए। किसी से ईर्ष्या आदि भी न रखें और इस दिन पूजा पाठ करते समय अपने मन को शांत और प्रसन्न रखें। इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि आप काले, नीले या सफेद रंग के वस्त्र इस दिन न पहनें। इस दिन दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। दरअसल, इस दिन माता पार्वती के साथ भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है और उनका दूध से अभिषेक किया जाता है। हरियाली तीज के दिन तामसिक भोजन का सेवन ना करें।
माता पार्वती को अर्पित करें ये चीजें
इस दिन माता पार्वती को श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ानी चाहिए। पूजा के वक्त माता पार्वती को मेहंदी, कुमकुम, चुनरी, सिंदूर, फूल, माला आदि श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ानी चाहिए।
तीज पर तीन बातें त्यागने का विधान है: पति से छल-कपट, झूठ एवं दुव्र्यवहार करना तथा परनिंदा।
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। हिमाचल न्यूज़ यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। हिमाचल न्यूज़ अंधविश्वास के खिलाफ है।
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